बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

उड़ान




सैन फ्रांसिस्को का  यह मौसम बहुत ही सुहाना था. काफी देर से हल्की बूंदाबांदी हो रही थी. दक्ष बर्कले यूनिवर्सिटी से वापस आया  था और बार्ट ( बे एरिया रैपिड ट्रांसपोर्ट) स्टेशन  से पैदल चलते हुए अपने फ्लैट की तरफ जा रहा था. छाता लगाने के बाद भी बारिश की बूंदे हवा के झोंके से रह रह कर उसके शरीर को स्पर्श कर  रही थी और दिन भर की स्मृतियां जैसे एक बार फिर उसके मन मस्तिष्क में तरोताजा हो जा रही थी. बर्कले विश्वविद्यालय में " स्टार्टअप्स इन इंडिया" शीर्षक पर आज उसका व्याख्यान था . भारतीय समुदाय के छात्रों के अलावा दुनिया के अन्य देशों के भी छात्र एवं शोधकर्ता विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में खचाखच भरे थे और उसके पूरे व्याख्यान के समय तालियों की गड़गड़ाहट से लोग उसके ओजपूर्ण भाषण को बहुत ध्यान से सुनते रहे.

 उसके भाषण का  केंद्रबिंदु था कि भारत में स्टार्टअप्स के लिए अपार संभावनाएं हैं, लोग इस पर काम भी कर रहे हैं.  प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में नए स्टार्टअप्स का रजिस्ट्रेशन होता है लेकिन सबसे दुखद बात यह है कि उसमें से अधिकांश हर साल बंद हो जाते हैं.

 भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों से निकले हुए मेधावी छात्र सीधे विदेशों का रुख करते हैं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में अच्छे पैकेज में नौकरी करना शुरू कर देते हैं.  यह लोग स्टार्टअप्स में जोखिम लेने की बजाय  अच्छे पैकेज के कारण नौकरी करना ही पसंद करते हैं  और सोने के पिंजरे में कैद हो जाते हैं. शायद भारत में स्टार्टअप्स को  अधिक सफलता न मिल पाने के पीछे एक यह भी कारण है. लोग दूसरों से   कुछ और कहते हैं, और खुद कुछ और करते हैं. वह स्वयं इसका एक उदाहरण है. उसका मन आत्म ग्लानि से भरने लगा . भारतीय प्रबंध संस्थान बेंगलुरु से एमबीए करने के बाद उसे ओरेकल  का ऑफर मिला और  वह  आज कल ओरेकल की स्ट्रेटजी टीम का हिस्सा है.

 "उसने खुद जोखिम क्यों नहीं लिया ? " उसने अपने आप से प्रश्न किया .

"भारतीय संसाधनों का उपयोग करके वह जिस  काबिल  बना उसका फायदा तो अमेरिका को हो रहा है, भारत को क्या मिला?"

 वह  अपने आपसे प्रश्न कर रहा था और उनके उत्तर भी स्वयं ढूढ रहा था और इसी बीच डाउनटाउन  स्थित उसका फ्लैट भी आ गया. वह आज बर्कले यूनिवर्सिटी में छात्रों को सफलता के सूत्र और स्टार्टअप्स की स्ट्रेटजी बताने गया था लेकिन लौटकर आते आते वह स्वयं अपने सवालों में जैसे गुम हो गया.

 फ्लैट के अंदर आकर भी वह अपने सवालों के उत्तर ढूंढ रहा था. उसे याद है कि  हैदराबाद के हाईटेक इलाके में विप्रो सर्किल पर उसके पिता ठेले पर इडली और डोसा की चलती फिरती दुकान लगाते थे.  पास में ही कई आईटी कंपनियों सीए टेक्नोलॉजी, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और और ओरेकल जैसी  नामी-गिरामी कंपनियों के कार्यालय थे. वह पढ़ाई तो करता था लेकिन अपने पिता की सहायता के लिए अक्सर उनकी दुकान पर जाता था. यह काम ही ऐसा था जिसमें पूरा परिवार लगा रहता था. घर पर मां रात में इडली और डोसे का सामान तैयार करती थी, उसकी छोटी बहन भी उनका हाथ बंटाती  थी और सुबह सुबह पिता अपनी चलती फिरती दुकान लेकर निकल जाते थे. रा मैट्रियल से उत्पाद तैयार करना और फिर उनकी बिक्री करना यह तीनों काम एक ही परिवार करता था. यह अपने आप में कम लागत पर सामान तैयार करने और कम कीमत पर बेचने का एक सशक्त उदाहरण था.

 आईटी कंपनियों में काम करने वाले युवा  कम कीमत पर अच्छी गुणवत्ता के इडली और डोसे  मिलने  के कारण उनके पिता की दुकान के स्थाई ग्राहक थे. वह इन युवाओं को देखता था और इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बड़े-बड़े कार्यालयों को देखता था और सोचता  था कि इन  में काम करने वाले लोग भी कितने सौभाग्यशाली होते हैं. वह भी इन आने वाले युवा ग्राहकों से अपनी जिज्ञासाओं के बारे में पूछता और उनमें से कुछ लोग बहुत सहजता से उसे समझाते थे. इसी कारण वह अपने पिता को बीटेक की पढ़ाई करने के लिए तैयार कर सका था. पढ़ाई में थोड़ी मेहनत, इन युवाओं का मार्गदर्शन और सौभाग्य से हैदराबाद स्थित जेएनटीयू (जवाहरलाल नेहरू टेक्निकल यूनिवर्सिटी) में बीटेक कंप्यूटर साइंस मैं उसे एडमिशन मिल गया.

 इसके बाद भी वह पिता के काम में सहयोग करता रहा. उसने बिक्री, पैकिंग और डिलीवरी के कुछ नए प्रयोग भी किए जो काफी सफल रहे, जिससे पिता की व्यवसाय में थोड़ा वृद्धि भी हुई.  जब कैट में उसका 99.9० परसेंटाइल आया तो इन युवाओं ने ही उसके पिता को समझाया और उसके पिता ने भी हिम्मत करके उसे भारतीय प्रबंध संस्थान बेंगलुरु में प्रवेश दिलवाया. उसे बी टेक और एमबीए के लिए बैंक से लोन मिल गया था. फिर उसकी उड़ान भारतीय प्रबंध संस्थान बेंगलुरु से सीधे ओरेकल  पार्कवेसैन  फ्रांसिस्को आकर रुकी. पिछले 4 सालों में यहां रहते हुए उसने सारे बैंक ऋण चुकता कर दिए हैं. अपने पिता की व्यवसाय को भी व्यवस्थित कर दिया है. उसकी बहन भी हैदराबाद के अच्छे कॉलेज में पढ़ रही है. यह सब संभव हो रहा है उसके वेतन और बचत से और शायद इसीलिए वह अपना कोई व्यवसाय करने का जोखिम नहीं ले सकता था. संभवत यही कारण है की औसत भारतीय निश्चित आय के लिए नौकरी करना ही ज्यादा पसंद करता है, अपना खुद का व्यवसाय नहीं . 

 उसने स्वयं की  स्टार्टअप्स बनाने के लिए योजना तो  बनाई है, आईटी एप्लीकेशन भी  बनाया है लेकिन हिम्मत नहीं कर सका, जिसका सबसे बड़ा कारण रहा है  असफलता का डर ( fear of  failure). उसने जो स्टार्टअप्स की योजना बनाई थी उसके  केंद्र में भी उसके पिता का व्यवसाय ही था जिसके पीछे उसकी मंशा थी कि  उसके पिता का यह  व्यवसाय  ऐसा नया आयाम ले जिससे उसके पिता को भी उस व्यवसाय पर गर्व हो सके.  उसने आईपैड में उस योजना को एक बार फिर शुरू से आखिर तक देखा उसे लगा यह प्रोजेक्ट चल सकता है. उसने अपने मजबूत होते आत्मविश्वास को एक बार फिर टटोला जैसे अपने आप से कहा कि "अगर पंछी पिंजरे में बंद रहेगा तो उड़ान कैसे भर सकेगा?"

और .... फिर उसने भारत वापस आने का फैसला कर लिया और शुरू हो गयी उड़ान, सैन फ्रांसिस्को - मुंबई और मुंबई - हैदराबाद .

                                                                           (२) 

भारत वापस आकर दक्ष ने दिन रात मेहनत की, आईटी एप्लीकेशन को अंतिम रूप दिया और फिर लॉन्च हो गया एक नया बिजनेस प्लान.

दक्ष के स्टार्टअप की हैदराबाद और बेंगलुरु दोनों जगह बहुत प्रशंसा हो रही है. यह अपनी तरह का एक अलग ही बिजनेस मॉडल है जिसका आधार है लोगों का विश्वास. हैदराबाद और बेंगलुरु की बड़ी गेटेड कम्युनिटी में "अनलॉक्ड फूड स्टोरेज" रखने का अनुबंध किया गया है. इस फूड स्टोरेज में इडली, डोसा, बड़ा और बिरयानी के पैक  रखे जाते हैं, जिन्हें बेचने  के लिए किसी व्यक्ति की जरूरत नहीं होती है.  लोग स्वयं आकर अपनी जरूरत के पैक किए हुए आइटम ले जा सकते हैं और स्टोरेज के साथ लगी पास  मशीन पर पेमेंट कर सकते हैं,जिसमें कॉन्टैक्टलेस पेमेंट की सुविधा भी है. फीडबैक और आइटम वापस करने के लिए भी सुविधा है. शुरुआत में लगा था कि शायद लोग सामान ले जाएंगे और भुगतान नहीं करेंगे. 1- 2 मामलों को को छोड़कर कभी ऐसा नहीं हुआ और अब लोग स्वयं सामान ले जाते हैं और भुगतान कर जाते हैं. ऐसा नहीं होता है कि कोई सामान ले जाए और भुगतान न कर जाए. इसका थीम कि "लोगों का विश्वास किया जाएगा तो वह  विश्वास नहीं तोड़ेंगे" सफल रहा है.

फूड स्टोरेज में उपलब्ध सामान को ऑनलाइन देखा जा सकता है.  इस तरह शहर के सारे फूड स्टोरेज में एक केंद्रीकृत प्रणाली से सामान की बिक्री और उत्पादन को नियंत्रित किया जाता है. 

दक्ष के स्टार्टअप में इस फूड स्टोरेज के अलावा "एनी थिंग एनी टाइम एनी व्हेर" . यानी स्टार्टअप के मोबाइल ऐप पर खाने का कोई आइटम बुक करने के बाद किसी भी समय, पूर्व निश्चित स्थान या लोकेशन पर डिलीवरी ली जा सकती है. यह डिलीवरी कार में बैठे हुए, चौराहे पर, सड़क किनारे खड़े हुए, बस स्टॉप पर, यह किसी पार्क में भी ली जा सकती है.

 आज दक्ष के पिता के पास उनका पुराना काम है लेकिन उसका बिजनेस मॉडल एक  दम नया (इनोवेटिव)  है. वह इस नई कंपनी के चेयरमैन है और बेहद खुश हैं. लोग उनकी  कहानी सुनाते हैं  कि कैसे  सड़क पर  ठेला लगा कर इडली डोसा बेचने वाला व्यक्ति इतनी बड़ी कंपनी का मालिक बन गया ?

 दक्ष को भी अपने परियोजना प्रबंधन पर बहुत संतोष है. आज उसकी  कंपनी की चर्चा होती है, उसका वैल्यूएशन किया जा रहा है और लोग आईपीओ लाने की सलाह दे रहे हैं.

 दक्ष को  सबसे ज्यादा खुशी इस बात को लेकर है कि  अनेक  प्रबंध संस्थान में  उसके स्टार्टअप की सफलता की कहानी तमाम कार्यक्रमों  का हिस्सा होती है, और बर्कले यूनिवर्सिटी सैन  फ्रांसिस्को में जहां कभी वह व्याख्यान के लिए जाता था उसकी सफलता की कहानी  के वीडियो छात्रों और शोधकर्ताओं को दिखाये जाते हैं.

 बिल्कुल सच है कि पिंजरे में बंद रह कर कोई उड़ान नहीं भर सकता है.

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- शिव प्रकाश मिश्र 

मूल कृति - १४ अक्टूबर २०२० 

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